बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और सभी दलों की निगाहें इस बार भी उन सीटों पर टिकी हैं, जहां 2020 के चुनाव में हार-जीत का फैसला बेहद कम अंतर से हुआ था. इन 36 सीटों पर हुई मामूली जीत-हार ने पांच साल पहले राज्य की सियासी तस्वीर बदल दी थी. इस बार भी इन्हें लेकर जबरदस्त घमासान तय माना जा रहा है.
2020 के चुनाव में करीब तीन दर्जन सीटें ऐसी थीं, जहां नतीजा तीन हजार या उससे भी कम वोटों के अंतर से तय हुआ था. इनमें महागठबंधन के पास 17, एनडीए के पास 19 और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी. यही वजह है कि इन इलाकों में इस बार 2025 में भी जातीय समीकरणों से लेकर गठबंधन की फेरबदल तक हर बात का असर देखने को मिलेगा.
हिलसा सीट पर हुआ था सबसे करीबी मुकाबला
हिलसा विधानसभा सीट पर सबसे रोमांचक मुकाबला हुआ था. यहां जदयू के कृष्ण मुरारी शरण ने राजद के शक्ति सिंह यादव को सिर्फ 12 वोटों से हराया था. इतनी मामूली जीत को लेकर राजद ने उस समय धांधली का आरोप लगाया था. इस बार भी हिलसा सीट को लेकर दोनों दलों में रणनीति तेज है.
सिमरी बख्तियारपुर और सुगौली दिखेगा समीकरणों का नया खेल
सिमरी बख्तियारपुर में 2020 में वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को राजद के चौधरी युसूफ सलाउद्दीन ने मात्र 1759 वोटों से हराया था. वहीं सुगौली में राजद के शशिभूषण सिंह ने वीआईपी के रामचंद्र सहनी को 3447 वोटों से पराजित किया था. दिलचस्प बात यह है कि अब वीआईपी और राजद के बीच गठबंधन है, यानी इस बार 2025 में समीकरण बिल्कुल अलग होंगे और सहनी की भूमिका किंगमेकर जैसी हो सकती है.
महागठबंधन की करीबी जीत वाली सीटें
कम वोटों के अंतर से जीती गई महागठबंधन की प्रमुख सीटें इस प्रकार थीं.
सिकटा: भाकपा माले के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता - 2302 वोटों से जीत
कल्याणपुर: राजद के मनोज कुमार यादव - 1197 वोटों से
बाजपट्टी: राजद के मुकेश यादव - 2704 वोटों से
किशनगंज: कांग्रेस के इजरारूल हक - 1381 वोटों से
बखरी: भाकपा के सूर्यकांत पासवान - 777 वोटों से
खगड़िया: कांग्रेस के छत्रपति सिंह यादव - 3000 वोटों से
राजापाकर: कांग्रेस की प्रतिमा दास - 1746 वोटों से
भागलपुर: कांग्रेस के अजित शर्मा - 1113 वोटों से
डेहरी आन सोन: राजद के फतेह बहादुर कुशवाहा - 464 वोटों से
औरंगाबाद: कांग्रेस के आनंद शंकर सिंह - 2243 वोटों से
अलौली: राजद के रामवृक्ष सदा - 2773 वोटों से
महाराजगंज: कांग्रेस के विजय शंकर दुबे - 1976 वोटों से
सिवान: राजद के अवध बिहारी चौधरी - 1973 वोटों से
दरभंगा ग्रामीण: राजद के ललित कुमार यादव - 2141 वोटों से
इन दो सीटों पर पांच साल में ही पलट गया था इतिहास
रामगढ़ और कुड़हनी ऐसी दो सीटें रहीं, जिनका राजनीतिक इतिहास पांच साल में ही पलट गया. रामगढ़ में 2020 में राजद के सुधाकर सिंह मात्र 189 वोटों से जीते थे, लेकिन बाद में लोकसभा चुनाव जीतने के कारण सीट खाली हुई और उपचुनाव में भाजपा ने कब्जा जमा लिया. कुड़हनी में भी राजद के डा. अनिल सहनी 712 वोटों से जीते थे, लेकिन सदस्यता रद्द होने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता ने जीत दर्ज की.
ये हैं एनडीए की करीबी जीत वाली सीटें
एनडीए की तरफ से भी कई सीटें बेहद कम अंतर से जीती गई थीं, जिन पर इस बार खतरा मंडरा रहा है.
परिहार: भाजपा की गायत्री देवी - 1569 वोटों से
रानीगंज: जदयू के अचमित सदा - 2304 वोटों से
प्राणपुर: भाजपा की निशा सिंह - 2972 वोटों से
अलीनगर: भाजपा के मिश्रीलाल यादव - 3101 वोटों से
बहादुरपुर: जदयू के मदन सहनी - 2629 वोटों से
सकरा: जदयू के अशोक चौधरी - 1537 वोटों से
भोरे: जदयू के सुनील कुमार - 462 वोटों से
हाजीपुर: भाजपा के अवधेश सिंह - 2990 वोटों से
बछवाड़ा: भाजपा के सुरेश मेहता - 484 वोटों से
परवत्ता: जदयू के संजीव कुमार - 951 वोटों से
मुंगेर: भाजपा के प्रणव कुमार दास - 1244 वोटों से
बरबीघा: जदयू के सुदर्शन कुमार - 113 वोटों से
आरा: भाजपा के अमरेंद्र प्रताप सिंह - 3002 वोटों से
टिकारी: हम पार्टी के अनिल कुमार - 2630 वोटों से
झाझा: जदयू के दामोदर राऊत - 1679 वोटों से
सियासत के नए समीकरण में दिखेगी दल बदल की बयार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मटिहानी सीट पर 2020 में लोजपा के राजकुमार सिंह ने जदयू के नरेंद्र कुमार सिंह को 333 वोटों से हराया था. लेकिन अब राजकुमार जदयू में हैं और नरेंद्र कुमार राजद में शामिल हो चुके हैं. इसी तरह चकाई से निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने राजद की सावित्री देवी को 581 वोटों से हराया था और बाद में नीतीश कुमार सरकार में मंत्री बन गए.
नतीजों का असर तय करेगा रणनीति की दिशा
जानकारी के अनुसार, इन 36 सीटों पर नजर सिर्फ इसलिए नहीं है कि अंतर कम था, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इनमें से कई इलाकों में जातीय और सामाजिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं. बीजेपी और जदयू के बीच तालमेल के साथ-साथ महागठबंधन की आंतरिक सीट-शेयरिंग भी इन नतीजों को प्रभावित करेगी.
बिहार की राजनीति में यह परंपरा रही है कि कई बार छोटे-छोटे वोटों का अंतर बड़े गठबंधनों की किस्मत तय कर देता है. कौन बनेगा किंग और कौन किंगमेकर है इस बार भी वही 36 सीटें बिहार की सियासत की दिशा तय कर सकती हैं.
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