स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे मानसिक रूप से मजबूत हों और किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग ने पहल शुरू कर दी है।
विभाग ने अब तक 75 शिक्षकों को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किया है। ये शिक्षक स्कूलों में आने वाले बच्चों की हरकतों पर ध्यान देंगे। असामान्य व्यवहार करने पर उस बच्चे की काउंसलिंग भी शिक्षक करेंगे।
बच्चों की हर हरकत पर रखी जा रही नजर
स्कूलों में आने वाले बच्चों की मानसिक स्थिति कैसी है, वे कैसे बात करते हैं, उनका व्यवहार कैसा है, इन सभी बातों पर प्रशिक्षित शिक्षक नजर रखते हैं। किसी भी हरकत से यदि मानसिक रोग की आशंका दिखाई देती है या बच्चे अवसाद में जाते हुए लगते हैं, तो शिक्षक तुरंत उन्हें फॉलो करते हैं।
वे बच्चे को कमरे में ले जाकर उससे बात करते हैं और उसकी गतिविधियों को बारीकी से देखते हैं। यदि शिक्षक के काउंसलिंग करने के बाद भी बच्चे के व्यवहार में सुधार नहीं होता, तो मनोचिकित्सक की मदद ली जाती है।
इस तरह की हरकत करते बच्चे मिले
शिक्षकों ने जिन बच्चों पर ध्यान दिया, उनमें कुछ में असामान्य व्यवहार पाया गया। कुछ बच्चे अनुशासन का पालन नहीं करते। स्कूल के नियमों का उल्लंघन करते हैं। कुछ बच्चे अपने जैसे अन्य बच्चों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
कई अपने शिक्षक का मजाक बनाते हैं। कुछ बच्चे घर से मोबाइल लाकर स्कूल में रखते हैं और कक्षा से निकलकर परिसर में घूमते रहते हैं। कुछ बच्चों के पास सिगरेट भी मिली है। वहीं, कई बच्चे जो कक्षा में टापर थे, वे परीक्षा में पिछड़ रहे हैं।
आखिर क्यों जरूरत पड़ी
गैर-संचारी रोग पदाधिकारी डॉ. पंकज कुमार मनस्वी बताते हैं कि यह प्रयास बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए किया जा रहा है।
तीन साल में 75 शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया है। इनमें असामान्य व्यवहार को पहचानने की जानकारी दी गई है। यदि कोई बच्चा स्कूल जीवन में ही गलत सोच या गलत काम की ओर बढ़ रहा है, तो उसे इसी उम्र में सुधारा जा सकता है। बच्चे बातें आसानी से समझ लेते हैं, इसलिए लगातार प्रशिक्षण देकर यह कार्य किया जा रहा है।
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