Last Updated on October 23, 2025
   
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भागलपुर में मुस्लिम वोटर्स 18 फीसदी लेकिन टिकट सिर्फ एक, सियासी गणित या वोट बैंक का खेल?

भागलपुर में मुस्लिम आबादी 18.28% होने के बावजूद सात विधानसभा सीटों में सिर्फ एक को टिकट मिला. अब सियासी दलों की रणनीति पर भी सवाल उठ रहे हैं. मुस्लिम वोटों को लेकर हलचल बढ़ गई है.

2025-10-22
News

बिहार विधानसभा चुनाव के बीच भागलपुर जिले का सियासी माहौल पूरी तरह गर्म हो गया है. सात विधानसभा सीटों वाले इस जिले में अब चुनावी जंग जातीय और धार्मिक समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. दिलचस्प बात यह है कि जिले की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 18.28 प्रतिशत है, फिर भी राजनीतिक दलों ने इस बार उन्हें बहुत कम प्रतिनिधित्व दिया है.

जिले की सात सीटों भागलपुर, नाथनगर, कहलगांव, सुल्तानगंज, बिहपुर, गोपालपुर और पीरपैंती से इस बार कुल 85 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें सिर्फ चार मुस्लिम प्रत्याशी हैं. महागठबंधन ने राजद कोटे से नाथनगर सीट पर शेख जियाउल हसन को टिकट देकर मुस्लिम समाज को साधने की कोशिश की है. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने सुल्तानगंज से मतिउर रहमान को मैदान में उतारा है, जनसुराज पार्टी ने कहलगांव से मंजर आलम को टिकट दिया है, जबकि एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी मंजर आलम मैदान में हैं.

2020 में जिले से मैदान में थे 10 मुस्लिम प्रत्याशी

पिछले चुनाव यानी 2020 में जिले से 10 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें तीन ने नाथनगर से चुनाव लड़ा था. इस बार उस आंकड़े में भारी गिरावट आई है. कांग्रेस ने भागलपुर सीट पर एक बार फिर अजीत शर्मा पर भरोसा जताया, जिससे राजद खेमे में असंतोष पनपा. नाथनगर में लंबे समय तक अबू केसर का नाम चर्चा में रहा, लेकिन टिकट बंटवारे के अंतिम क्षणों में समीकरण बदल गया.

मुस्लिम वोट हमेशा निभाते है निर्णायक भूमिका

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मुस्लिम वोट भागलपुर की राजनीति में हमेशा निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं. यही वजह है कि सभी दल इस वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं. महागठबंधन इसे अपने पारंपरिक आधार के रूप में देखता है, जबकि एनडीए भी इसे सामाजिक संतुलन के जरिये प्रभावित करने की रणनीति बना रहा है.

मुस्लिम समाज को टिकट देने से अधिकांश दलों ने किया परहेज

फिर भी, जब उम्मीदवार तय करने की बात आई तो अधिकांश दलों ने मुस्लिम समाज को टिकट देने से परहेज किया. जबकि जिले की जातिगत बनावट बताती है कि यादव 11.81%, ब्राह्मण 5.11%, कुशवाहा 4.95% और रविदास 4.24% हैं. यानी जनसंख्या में अच्छी हिस्सेदारी के बावजूद मुस्लिम चेहरे नदारद हैं.

अब सवाल उठ रहा है कि जब मुस्लिम वोट हर दल के लिए अहम हैं, तो उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने से क्यों बचा जा रहा है? यही वजह है कि भागलपुर में चुनावी माहौल और भी दिलचस्प होता जा रहा है.


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