Last Updated on November 23, 2025
   
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गृह नहीं संभालेंगे नीतीश: 20 साल बाद सत्ता संतुलन का नया फार्मूला, JDU के मंत्री कमबजट ज्यादा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार गृह विभाग अपने पास नहीं रखने का फैसला किया है, जो 20 साल बाद हुआ है। यह कदम सत्ता संतुलन के एक नए फार्मूले का संकेत है, जिसमें गठबंधन सरकार के सभी दलों को उचित प्रतिनिधित्व देने की रणनीति शामिल हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय प्रशासनिक स्तर पर भी बदलाव लाएगा।

2025-11-22
News

बिहार की नई एनडीए सरकार में विभागों का बंटवारा सिर्फ प्रशासनिक पुनर्संरचना नहीं, बल्कि सत्ता-संतुलन का एक नया राजनीतिक फार्मूला भी साबित हो रहा है। 20 साल तक गृह विभाग को अपने पास रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार इसे डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को सौंपकर राजनीतिक संदेश दे दिया है कि नई सरकार में वे साझेदारी की नई परिभाषा लिखना चाहते हैं।

राजनीतिक शैली में बड़ा बदलाव बिहार में 53 साल बाद पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी सरकार में गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास नहीं है। ऐसे में यह फैसला सिर्फ विभागीय अदला-बदली नहीं, बल्कि नीतीश की राजनीतिक शैली में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

सम्राट चौधरी को दी गई जिम्मेदारी गृह विभाग राज्य के ताकतवर मंत्रालयों में गिना जाता है, जहां DGP से लेकर SP तक की सीधी कमान होती है। इसे छोड़कर नीतीश ने दिखाया है कि वे गठबंधन की इस नई पारी में सत्ता का केंद्रीय नियंत्रण साथी दलों के साथ साझा करने को तैयार हैं। सबसे बड़ी बात, सम्राट चौधरी को यह जिम्मेदारी सौंपना भाजपा नेतृत्व को स्पष्ट संदेश है कि गठबंधन में उनकी भूमिका ‘सिर्फ सहयोगी’ से आगे बढ़ चुकी है।

दोनों मोर्चों पर संतुलन का नया फॉर्मूला दूसरी ओर, जदयू ने भाजपा के हाथ से वित्त और वाणिज्य कर मंत्रालय लेकर अपने वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र यादव को दिया है। वित्त, जो विकास योजनाओं, बजट प्रबंधन और संसाधन आवंटन का मूल है, उसका जदयू के पास जाना दर्शाता है कि नीतीश ने प्रशासनिक स्थिरता का नियंत्रण अभी भी अपनी पार्टी के ही अनुभवी कंधों पर रखा है। एक ओर गृह विभाग भाजपा को, और दूसरी ओर वित्त जदयू को, यह संतुलन स्पष्ट करता है कि नीतीश ने राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों मोर्चों पर संतुलन का नया फॉर्मूला लागू किया है।

भाजपा के पास मंत्रियों की संख्या ज्यादा दिलचस्प यह भी है कि भाजपा के पास मंत्रियों की संख्या तो ज्यादा है, लेकिन जदयू के पास विभागों का बजट लगभग 1.30 लाख करोड़ अधिक है।

इसका अर्थ यह है कि संख्या से अधिक महत्व विभागीय प्रभाव और बजट से तय होगा। जदयू के सिर्फ 8 मंत्रियों के पास 2.19 लाख करोड़ के विभाग हैं, जबकि भाजपा के 16 मंत्रियों के पास 89 हजार करोड़ के विभाग।

यानी कम मंत्री, लेकिन ज्यादा आर्थिक शक्ति—यह भी एक खास रणनीतिक सेटिंग का संकेत है।

दूसरी तरफ पहली बार मंत्री बनीं श्रेयसी सिंह को खेल विभाग और मंगल पांडे को फिर से स्वास्थ्य की जिम्मेदारी देकर भाजपा ने भी अपने अनुभवी और नई पारी शुरू करने वाले दोनों तरह के चेहरों को संतुलित किया है।

नितिन नवीन को नगर विकास-आवास और पथ निर्माण जैसे दो बड़े शहरी-केंद्रित विभाग देकर भाजपा ने शहरी वोट बैंक पर अपना फोकस भी मजबूत किया है।

वहीं, HAM के संतोष सुमन को फिर से लघु जल संसाधन विभाग देकर गठबंधन की छोटी पार्टियों को भी भरोसे का संदेश दिया गया है।

इस पूरी पुनर्संरचना में सबसे खास यह है कि नीतीश कुमार ने सामान्य प्रशासन विभाग तो अपने पास रखा, लेकिन गृह विभाग छोड़कर यह दर्शाया कि वे भविष्य की राजनीति में सत्ता साझा कर चलने वाली छवि को मजबूत करना चाहते हैं।

बिहार सरकार की पहली कैबिनेट बैठक 25 नवंबर को होगी, जहां इन नए समीकरणों का असर प्रशासनिक फैसलों में देखने को मिलेगा।

विभागों का यह बंटवारा आने वाले महीनों में राजनीतिक संदेश, प्रशासनिक संतुलन और गठबंधन की मजबूती, तीनों की कसौटी पर परखा जाएगा।


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